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Showing posts from June, 2013

sloke,mantra and meaning

1. जन्मलग्न गुरुश्चैव रामचन्द्रो वने गत:|तृतीये बलिः पाताले चतुर्थे हरिचन्द्र:|| ख्स्ठे द्रोपदी हरम च रावन अस्तमे|दशमे दुर्योधनं हन्ति द्वाद्सो पांडु वनागातम || लग्न मे गुरु से राम वनवास गए ,तृतीय से बलि पाताल गए .,चतुर्थ से हरिश्चंद्र के सत्य की परीक्षा हुई छठे से द्रोपदी का हरण हुआ आठवे से रावन का नाश ,दसवे से दुर्योधन ,बारहवे से पंडू की मृत्यु ,द्वितीय से भीष्म को राज्य से वंचित .,पंचम से दसरथ को पुत्र वियोग ,सप्तम से आज को पत्नी वियोग ,नवं से विस्वमित्र अब्छ्य भछन किया लाभ भाव का गुरु नल को राजजी संकट वनवास ,पत्नी वियोग आदि अशुभ फल मिला 2. यः कश्चिदात्मानमद्वितीयं जातिगुणक्रियाहीनं षडूर्मीषडभावेत्यादिसर्वदोषरहितं सत्यज्ञानानन्दानन्तस्वरूपं स्वयं निर्विकल्पमशेषकल्पाधारमशेषभूतान्तर्यामित्वेन वर्तमानमन्तर्बहीश्चाकाशवदनुस्यूतमखंडानन्द स्वभावमप्रमेयमनुभवैकवेद्यमापरोक्षतया भासमानं करतलामलकवत्साक्षादपरोक्षीकृत्यकृतार्थतया कामरागादिदोषरहितः शमदमादिसम्पन्नोभावमात्सर्यतृष्णाशामोहादिरहितोदंभाहंकारादिभिरसंस्पृष्टचेता वर्तत एवमुक्तलक्षणो यःस एव ब्राह्मण इति श्रुतिस्मृतिपुराणेतिहासानामभिप्र...