क्या कहता है ? केतू पर्वत :-
१२. केतू :-इस पर्वत का प्रभाव जातक पर जीवन के ५ वे साल से २५ वे साल तक की उम्र तक विशेष प्रभाव होता है। यह चन्द्र तथा शुक्र पर्वत को विभाजित करता है। यह भाग्य रेखा के प्रारम्भिक स्थान के पास होता है। इस का फल राहू पर्वत के सामान ही होता है। यदि पर्वत विकसित हो साथ ही भाग्य रेखा भी सशक्त और स्पष्ट होतो,वह जातक भाग्यशाली होकर जीवन के सभी सुखों को भोगता है। ऐसा जातक गरीब के घर जन्म लेकर भी अमीर बनने की योग्यता रखता है। यदि यह पर्वत अस्वाभाविक रूप से विकसित हो , और भाग्य रेखा टूटी-फूटी होतो, उस जातक को बचपन में बहुत बुरे दिन देखना पड़ते है। यह जातक बचपन में रोगी भी रहता है। यदि यह पर्वत अविकसित हो और भाग्य रेखा प्रबल होतो, भी उस जातक के जीवन से गरीबी नहीं मिटती है। अतः जातक के हाथ में केतू पर्वत विकसित हो तो , उस जातक को जीवन सभी सुख प्राप्त हो जाते है। इस प्रकार हम यह कह सकते है की किसी भी जातक की हथेली में पर्वतों के विकसित होने का बहुत प्रभाव पड़ता है।
क्या कहता है ? राहू पर्वत :-
११. यह पर्वत जातक के बारे में यह निर्धारित करता है कि जातक का भाग्य जीवन में साथ देगा या नहीं ? क्या जातक को कड़ी मेहनत के बाद सफलता मिलेगी या आसानी से ? जानिए
इस पर्वत का स्थान हथेली में मस्तिष्क रेखा के निचे चन्द्र पर्वत, मंगल और शुक्र पर्वत से घिरा हुआ जो स्थान होता है , उसको राहू पर्वत कहते है। इसी पर्वत से सफलता रेखा या शनि रेखा , अथवा भाग्य जिसको हम लोग कहते है इस पर से गुजरती है। और वही जातक के जीवन की सफलता और असफलता निर्धारित करती है।
यदि राहू का पर्वत विकसित हो और उस पर से भाग्य रेखा स्पष्ट रूप से गुजरती है तो यह मानकर चलना चाहिये की जातक ने अपने जीवन में जो भी सफलता पायी है वह अपने पुरुषार्थ के दम पर ही पाई है। इस पर्वत से गुजरते समय यदि भाग्य स्पष्ट और गहरी है तो, वह जातक निश्चित तौर से परोपकारी , प्रतिभावान तथा जीवन के सभी सुखो को भोगने वाला होगा। यदि इस पर्वत से गुजरते समय भाग्य रेखा टूटी-फूटी हो और राहू पर्वत विकसित होतो वह जातक जीवन में एक बार आर्थिक रूप से सम्पन्न होकर फिर पतन के गर्त में चला जायेगा। यदि यह पर्वत हथेली के मध्य में सरक जाता है तो , उस जातक को यौवन कल में बहुत बुरे दिन देखने को मज़बूर होना पड़ता है। यदि हथेली के बीच का हिस्सा गहरा हो और उस पर भाग्य रेखा टूट जाय और आगे बड़े तो उस जातक को यौवन काल में भिखारी के सामान जीवन जीना पड़ता है। इस पर्वत के कम विकसित होने पर जातक अपने हाथों ही अपनी सम्पत्ति का नाश कर देता है।